अन्य भाषा क्या है? अन्य भाषा के गहन और अद्धभुत रहस्य


तुम शायद सोचते होओगे मैं तुम्हें कहूंगा कि ‘कुछ शब्दों को घंटो तक दोहराते रहना ’ यह अन्य भाषा कि प्रार्थना है। कि ‘ बस बिना जिज्ञासा दोहराते रहना’, यह अन्य भाषा प्रार्थना है। यह सब भटकाव हैं। इन सबके पीछे खेल हैं किसी अगुवे के पीछे पीछे से उठती आवाजे और समूह से उठते स्वर्गीय भाषा के स्वर, ये सब खेल हैं। वह अगुआ जो चर्च में अन्य भाषा दोहरा रहा है, उसके भीतर कुछ भी नहीं हो रहा है। और जिसने बिना जिज्ञासा, लालसा, बिना प्रेम अन्य भाषा मे प्रार्थना कि है, उसके भीतर परमात्मा की कोई स्मृति नहीं, कोई स्मरण नहीं है। एक कृत्य दोहरा रहा है। सदियों से दोहराया गया है।  अब संस्कार बन गया है उसे दोहराने का, दोहरा लेता है। चर्च गए अन्य भाषा बोली बस हो गया केवल शब्दों का दोहराव, बस उन्ही शब्दों को दोहराए जा रहे, एक तरह की संस्कारबद्ध गुलामी पैदा हो गयी। यह अन्य भाषा कि प्रार्थना नहीं। चुप्पी के क्षण, मौन के क्षण, सौंदर्य भाव—बोध के क्षण, प्रीति की अनुभूति, मैत्री का भाव, तन्मयता, विमुखता इन शब्दों से मैं कहना चाहता हूं कि अन्य भाषा प्रार्थना क्या है। इन सारे शब्दों में भी पूरी नहीं हो जाती, बस इन शब्दों में थोड़े से इशारे मिलते हैं। तुम जानकर चकित होओगे, हिब्रू भाषा में प्रार्थना के लिए कोई शब्द नहीं।और अन्य भाषा कि प्रार्थना  भी शब्दों है, इसे शब्दों मे व्यक्त नहीं किया जा सकता, लेकिन हमने अन्य भाषा को भी सिर्फ शब्दों तक सिमित कर दिया केवल शब्द रह गए और सब कुछ जाता रहा इसलिए पौलुस को विशेष रूप से कहना पड़ा
(  यदि मैं मनुष्यों, और स्वर्गदूतों की बोलियां बोलूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ। 1कुरि.13:1 ) लेकिन फिर भी हम नहीं समझे, 


रोओ, हंसों, गाओ, नाचो, पुकारो, पर प्रार्थना के लिए कोई शब्द नहीं। क्योंकि प्रार्थना शब्दातीत है। हिब्रू भाषा ने सदव्यवहार किया, प्रार्थना को कोई शब्द नहीं दिया। प्रार्थना क्या क्या हो सकती है, उसकी तरफ इशारे किये। रोओ, गाओ, नाचो, हंसों, आनंदमग्न हो पुकारो, झुकों, गिरो, असहाय हो जाओ, अवाक हो जाओ, विमुग्ध बनो, तन्मय हो जाओ, पर प्रार्थना के लिए कोई शब्द नहीं। इन सब में प्रार्थना चुक नहीं जाती, इन सबसे सिर्फ इशारे होते हैं। प्रार्थना इन सबसे बड़ी है। प्रार्थना इतनी विशाल है जितना विशाल ब्रह्माण्ड है। प्रार्थना उतनी ही बड़ी है जितना बड़ा परमात्मा है। प्रार्थना परमात्मा से छोटी नहीं है, क्योंकि प्रार्थना के क्षण में तुम परमात्मा के साथ एक हो जाते हो। प्रार्थना का क्षण सेतु है। जोड़ता है। तुम खो गये। भक्त नहीं बचता। जब भक्ति परिपूर्ण होती है, भक्त नहीं बचता। और जब तक भक्त बचता है तब तक भक्ति परिपूर्ण नहीं है। और इन सभी अनुभवों का नाम ही तो अन्य भाषा कि प्रार्थना है!


इसलिए बाइबिल कहती भक्ति सब मे उत्तम है क्योंकि ज़ब भक्ति बड़ी होकर परमेश्वर के प्रेम मे मिलकर एक हो जाती है तो फिर भक्त नहीं रहता वो तो अब विलीन हो गया उस परमात्मा मे एक हो गया तो प्रार्थना उतनी ही बड़ी है जितना परमात्मा है।


और तुम अगर अन्य भाषा कि प्रार्थना को समझना ही चाहो, तो प्रार्थना करनी पड़ेगी, प्रार्थना होना पड़ेगा। मेरे समझाने से नहीं होगी बात। जब भी मन को तरंगित पाओ और ऐसे क्षण सभी को आते हैं, मगर हम चूक चूक जाते हैं। अब अन्य भाषा प्रार्थना के लिए कोई समय तय मत कर लेना। ऐसा मत कर लेना कि रोज सुबह स्नान करके प्रार्थना करेंगे। जरूरी नहीं है कि स्नान के बाद तुम्हारे मन में प्रार्थना की तरंग हो ही।अन्य भाषा प्रार्थना को निर्धारित मत कर लेना। अन्य भाषा कब आ जाएगी, कब अचानक बादल फट जाएंगे और आकाश खुलेगा, कोई नहीं जानता सुबह कि सांझ, कि भर दुपहर, कि आधी रात! जब भी ऐसा हो जाए कि मन तन्मय हो, जब भी ऐसा हो जाए कि मन में कोई विचार न हों, जब भी ऐसा हो जाए कि मन में कोई ऊहापोह न चलता हो, बवंड़र न उठते हों, आधिया न हों, तरंगें न हों, लहरें न आती हों  और ऐसे क्षण सब को आते हैं, मैं फिर दोहरा दूं जब ऐसे क्षण आएं, तब झुक जाना। तब तुम क्या बोलोगे, यह बताने की जरूरत नहीं। कुछ बोलने जैसा आ जाए तो बोल लेना, कुछ कहने का मन हो जाए तो कह देना, कोई शब्द भीतर दोहरने लगे तो दोहरा लेना, कोई गीत की कड़ी गूंजने लगे तो गूंज जाने देना, मगर चेष्टा करके मत करना ऐसा। ऐसा मत करना कि अब कोई विशेष शब्द दोहराऊ। उसी दोहराने में मर जाएगी अन्य भाषा  प्रार्थना।


अन्य भाषा प्रार्थना बड़ी कोमल है, तन्वंगी है। यह विशेष प्रकार के शब्दों का चेस्टा का पत्थर तुमने पटका कि मर जाएगी। तुम कोशिश मत करना। भीतर से उठने लगे और अपने आप नए शब्द आ जाये, अनायास हो जाए, तो हो जाने देना। फिर ठीक है। अपने से जो हो, ठीक है, किया जाए, वही गलत है।अन्य भाषा प्रार्थना के जगत में यह नियम है अपने से जो हो जाए।


कभी कभी अनर्गल शब्द उठ सकते हैं। बच्चे, जैसे छोटे छोटे बच्चे कुछ भी शब्द पकड़ लेते हैं, दोहराए चले जाते हैं—कभी वैसा हो सकता है। प्रार्थना में तो निर्दोष बच्चे जैसा हो जाना है। या जैसे कभी तुमने शास्त्रीय संगीतज्ञों को आलाप भरते देखा है, वैसा आलाप पैदा हो सकता है जिसमें कोई शब्द भी नहीं है, सिर्फ स्वर है। या सब सन्नाटा हो सकता है। अन्य भाषा बड़ी है, सबको समा लेती है, किसी एक घटना में सीमित नहीं है। कभी सन्नाटा हो जाएगा इतना कि हाथ पैर भी न हिलेगे। और कभी ऐसा हो जाएगा ऐसी ऊर्जा उतरेगी कि नाचे बिना नहीं चलेगा। फिर जैसा हो! कभी यीशु की तरह बैठना हो जाए, तो बैठ जाना, कभी दाऊद की तरह नाचना हो जाए, तो नाच लेना। चेष्टा करके नाचना भी मत, चेष्टा करके बैठना भी मत। जब तक कृत्य है तब तक अन्य भाषा प्रार्थना नहीं, क्योंकि कृत्य में कर्ता है। और कर्ता में अहंकार है। तुम सिर्फ खुल जाना। जैसे सुबह की हवा आती है और फूल को नचा जाती है। और सुबह का सूरज उगता है और फूल की पंखुडिया खिल जाती हैं—बस ऐसे! तुम उपलब्ध रहना। तुममे परमात्मा कुछ करना चाहे तो होने देना, कुछ न करना चाहे तो चुपचाप जैसे हो वैसे ही रह जाना। जल्दी ही तुम्हें अन्य भाषा  प्रार्थना का स्वाद लगने लगेगा।


अन्य भाषा प्रार्थना स्वाद है। शब्द नहीं, विचार नहीं, प्रत्यय नहीं, सिद्धांत नहीं, अन्य भाषा स्वाद है। तुम्हारे भीतर एक मिठास भर जाएगी। जैसे भीतर कोई मधुकलश फूट गया, रोएं रोएं में मस्ती आ गयी। आंखें गुलाबी हो जाएंगी, जैसे नशे में हो जाती हैं। पैर कहीं के कहीं पड़ेंगे, जैसे शराबी के पड़ते हैं। इन क्षणों की प्रतीक्षा करो। ये क्षण आते हैं। ये छोटे छोटे क्षण हैं। और अगर तुम पकड़ लो क्षण को, तो क्षण बड़ा हो जाएगा।


अगर आप इस लेख से आशीषित हुए है तो कृपया टिपणी जरूर दे, धन्यवाद 

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3 Comments

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6 मई 2021 को 11:40 pm बजे ×

इससेे हमारी उन्नति कैसे हों सकती है?
जब तक हम इन शब्दों को समझते नहीं।

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Unknown
admin
4 मई 2022 को 11:13 pm बजे ×

अगर मैं हिन्दी या अंग्रेजी में प्रार्थना करता हूं तो मैं किस्से प्रार्थना करता हूं और यदि मैं अन्य भाषा में प्रार्थना करता हूं तो किस्से प्रार्थना करता हूं जबाब दीजिए

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