काम बंद हो तो दिखे

 एक प्रेमी था, वह दूर देश चला गया था। उसकी प्रेयसी उसके आने की प्रतीक्षा करती थी! की एक दिन हो जरूर आएगा प्रेयसी राह देखती रही। वर्ष आए गए। पत्र आते थे उसके, अब आता हूँ, अब आता हूँ
लेकिन उसकी प्रतीक्षा लंबी होती चली गई और वह नहीं आया। फिर वह प्रेयसी घबड़ा गई और एक दिन खुद ही चल कर उस जगह पहुंच गई जहां उसका प्रेमी था। वह उसके द्वार पर पहुंच गई, द्वार बन्द था। वह भीतर पहुंच नहीं पाई। और द्वार खटखटा रही थी! प्रेमी कुछ लिखता था,उसे दरवाजे की आवाज सुनाई नहीं दी, ओर वह बाहर प्रतीक्षा करने लगी। प्रेमी उसी प्रेयसी को पत्र लिख रहा था। और इतने दिन से उसने चार बार वादा किया और टूट गया तो बहुत - बहुत क्षमाएं मांग रहा था। बहुत - बहुत प्रेम की बातें लिख रहा था, बड़े गीत और कविताएं लिख रहा था। वह लिखते ही चला जा रहा है। उसे पता भी नहीं है कि द्वार पर भी कोई खड़ा है! आधी रात हो गई तब वह पत्र कहीं पूरा हुआ। उसने द्वार पर खटखटाने की आवाज सुनी तो वह घबड़ा गया। समझा कि क्या कोई भूत प्रेत है। अब द्वार कौन खट खटा रहा है? उसने द्वार खोला! वह तो उसकी प्रेयसी है। नहीं लेकिन यह कैसे हो सकता है। वह चिल्लाने लगा कि नहीं नहीं, यह कैसे हो सकता है? तू यहां है, तू कैसे, कहां से आई? उसकी प्रेयसी ने कहा: मैं घंटों से ख़डी हूं और प्रतीक्षा कर रही हूं कि तुम द्वार  खोलो  तो शायद तुम्हारी आंख मेरे पास पहुंचे। और वह प्रेमी छाती पीट कर रोने लगा कि पागल हूं  मैं तुझी को पत्र लिख रहा हूं और इस पत्र के लिखने के कारण द्वार की आवाज नहीं सुन पा रहा हूं और तू द्वार पर ही मौजूद है। आधी रात बीत गई, तू यहां थी  यीशु ऐसे ही द्वार पर मौजूद है। हम न मालूम क्या क्या बातें किए चले जा रहे हैं। न मालूम क्या क्या पत्र शास्त्र पढ़ रहे हैं। कोई कहानियाँ किसे खोल कर बैठा हुआ है, कोई किताबें खोल कर बैठा हुआ है, कोई बड़े-बड़े ग्रंथ पढ़ रहा है। न मालूम क्या क्या लोग कर रहे हैं, और जिसके लिए कर रहे हैं वह ह्रदय के द्वार पर हमेशा मौजूद है। लेकिन फुर्सत हो तब तो आंख उठे। काम बंद हो तो द्वार की आवाज सुनाई दे! वह दिखाई पड़े जो द्वार पर है। 
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