सच्चा सुख क्या है?

एक विश्रामशाला मे तीन यात्री मिले। एक बूढा था करीब साठ साल का एक कोई पैंतालिस साल का अधेड़ आदमी था और एक कोई तीस साल का जवान था। तीनो बाते करने मे लग गये। उस जवान ने कहा कि कल रात मैंने ऐसी स्त्री के साथ गुजारी कि उससे सुन्दर स्त्री इस संसार मे नही हो सकती। और जो सुख मैने पाया वह अवर्णनीय है। पैतालिस साल वाले आदमी ने कहा छोडो बकवास! बहुत स्त्रियां मैंने देखी है। वे सब अवर्णनीय जो सुख मालूम पडते है,कुछ अवर्णनीय नही है। सुख भी नही है। सुख मैंने जाना कल रात। मै राजभोग मे आमंत्तित था। ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी जीवन मे मैंने खाया नही। साठ साल के आदमी ने कहा ‘यह भी बकवास है। असली बात मुझे पुछो। आज सुबह ऐसी दस्त हुई, पेट इतना साफ हुआ कि,ऐसा आनंद मे कभी जाना नही, अवर्णनीय है ।’ बस संसार के सब सुख ऐसे ही है। उम्र के साथ बदल जाते है। लेकिन तुम ही भुल जाते हो तीस साल कि उम्र मे कामवासना बडा सुख देती है। पैंतालीस साल मे भीजन ज्यादा सुख देने वाला मालुम पडता है, इसलिये लोग अकसर चालीस पैंतालीस के आस पास ज्यादा मोटे होने लगते है। साठ साल मे भोजन मे कोई सुख नही रह जाता,सिर्फ पेट ठीक से साफ हो जाये बस। जो सुख और शांति यीशु के पास है वो कही नही तीनो ठीक कह रहे है संसार के सुख बस ऐसे ही है। इन सुखो के लिये हमने परमेश्वर के प्रेम को गंवाया है। बाईबल मे हम देख सकते है मत्ति 2:10 मे लिखा है यात्री जो यीशु का दर्शन करने आये तारे को देखकर अनंदित हुवे। क्योकि वो जानते थे कि सच्चा सुख और आनंद देने वाला यीशु ही है। यीशु ही आपको सच्चा आनंद दे सकते है। तो आज आपको यीशु कि उध्दारकर्ता ग्रहण करके उसके पिछे चलने कि जरुरत है।
Previous
Next Post »